#श्रीगणेशपूजन
गणपति की पूजा , पूजा से सब विघ्न टले।
वक्र तुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ,
निर्विघ्न कुरु में देव सर्वकायेषु सर्वदा ॥
श्री गणेशजी को विघ्न हर्ता कहा जाता है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुवात में श्री गणेश पूजा का विधान है। वास्तव में श्री गणेश जी की प्रतिमा का प्रत्येक अंग प्रतीकात्मक रूप से हमें ऐसी सीख देता है कि यदि हम उन तथ्यों को सदैव ध्यान रखें तो सफलता के मार्ग में कोई बाधा आ भी जाए तो उस का सामना करने व उसे दूर करने के लिए साहस व आत्म शक्ति का संचार होता रहेगा।
गजमुख गणेशजी का सिर बड़ा है। बड़ा सिर ,बड़ी सोंच व बुद्धि का प्रतीक है। सकारात्मक विचार व चिंतनशील विश्लेषक बुद्धि का साथ हो तो विध्न बाधाएँ तो टल ही जाएगी ।
वास्तव में विचार ही हमारे आचरण व व्यवहार के चालक होते हैं। जाने अन्जाने अपने विचार से हमारे कार्य तो प्रभावित होते ही हैं हमारे आस पास के लोगों को भी यह प्रभावित करता है। कहा जाता है कि एक व्यक्ति उस पाँच व्यक्तियों का औसत होता है जिसके साथ वह अपना अधिकांश समय व्यतीत करता है , इसलिए यथा संभव अच्छी संगति में रहें , अच्छे विचार , अच्छी पुस्तकों की संगति में रहकर दूसरों के लिए अपने आपको भी मूल्यवान बनाते रहें। जाने अन्जाने हम अपने विचारों का एक चक्र निर्माण करते रहते हैं, इसलिए यदि आप गणेश भक्त हैं तो अपने विचारों को सदैव पवित्र रखने का प्रयत्न करें अपने विचारों से अलग सोंच रखने वाले के प्रति ,अपने शत्रु के प्रति भी उदार हृदय व अच्छे विचार जरूरी है . क्योंकि आपके उसके प्रति विचार बिना किसी संवाद के उस व्यक्ति तक पहुँच ही जाते हैं। चलिए इस बात को एक प्रसंग द्वारा समझें... एक बार एक प्रजावत्सल राजा अपने राज्य में भेष बदलकर नगर के बाजार में निरीक्षण के लिए निकल पड़े। अनेक व्यापारियों से बातचीत के बाद आश्वस्त व संतुष्ट एक श्मशान के पास एक लकड़ी व्यापारी के पास पहुँचे तो उन्हें कुछ व्याकुलता महसूस हुई , वे लौट आए । अगली बार फिर उस लकड़ी व्यापारी के पास पहुँचने पर उन्हें कुछ अजीब महसूस होने लगा तो महाराज ने सेनापति से इस बात का उल्लेख किया व उन्हें कारण खोजने की जिम्मेदारी सौंप दी । सेनापति ने उस व्यापारी से मेल - जोल बढ़ाने के उद्देश्य से उसके दुकान के पास ही एक दुकान खोल ली और वहीं समय बिताने लगे । सेनापति व लकड़ी व्यापारी में मित्रता हो गई तो व्यापारी ने सेनापति को बताया , " राजा भेष बदलकर बाजार का मुआयना करने आते हैं। मैं उन्हें पहचान लेता हूँ । काश ! राजा की मृत्यू हो जाती तो मेरी यह सारी चंदन की लकडियाँ बिक जाती । राजघराने के अलावा चंदन का खरीदार और कौन हो सकता है? "
सुनते ही सेनापति महोदय दौड़े दौड़े राजा के पास पहुँचे और सारी बात बता दी । राजा को अब समझ में आ गया कि उस व्यक्ति के पास रहने पर उन्हें क्यो . अजीब महसूस होता था।
आप समझ गए होंगे , विचारों की शक्ति को !! चलिए .... हम भी कोशिश करें ... ग्लो और ग्रो फार्मूला अपनाए । दूसरों में अच्छाई देखने व उसे कहने का अभ्यास करें . .. यह ग्लो है , फिर यदि आप चाहते हैं सामने वाले में सुधार की जरूरत है तो ग्रो के लिए सुलझे हुए शब्दों का प्रयोग करते हुए कहे।
श्री गणेशजी के सूपकर्ण (सूप के समान कान) हमे श्रेष्ठ जीवन जीने का अद्भुत संदेश देते हैं , सूप के लिए कहा जाता है -सार सार को गहि रहै थोथा देई उड़ाइ ।
ध्यान से सुनने का अभ्यास हमारी अनेक समस्याओं का समाधान बन सकता है। जब हम सुनते हैं तो बोलने वाले की कही अनकही आवश्यकता , उसके अनकहे विनती को समझने की विश्लेषण क्षमता भी सुनने के कौशल के साथ विकसित होना चाहिए।
चलिए ... प्रण करें , हम ध्यान से , धैर्य से सुनेंगे और थोथी , महत्वहीन बातों को उड़ा देंगे।
श्री गणेशजी को लंबोदर कहा जाता हैं उनका बड़ा पेट खुशहाली का प्रतीक है। खुश रहना बहुत जरुरी है। हमारे पास जो होगा वही हम दूसरों को भी देंगे ... चलिए प्रण करें . अपने जीवन में खुश रहेंगे । मुश्किल नहीं है खुश रहना , बस ध्यान रहें ... अपना ध्यान रखना व खुशी प्राथमिकता है कोई विलासिता नहीं ।
एकदंत गणेशजी के लिए कहा जाता है कि श्री गणेश व परशुराम जी के युद्ध में गणेशजी का एक दाँत टूट गया तो उन्होंने उसे लेखनी ( कलम) बना लिया । इस तरह प्रतिकूलता
को भी अपने अनुकूल बनाने की प्रवृत्ति हो तो पहाड़ भी बाधा डालने की कोशिश करे तो परेशान होकर हार मान ले।
चलिए .... प्रण करें . .. कोई भी प्रतिकूल परिस्थिति हो , बिना घबराए उसे अनुकूल अवसर में बदलने का प्रयत्न करेंगे।
श्री गणेशजी के प्रिय भक्तजनों यदि आप ने गणेशजी की पूजा व आरती की है तो जीवन में इन सद्प्रवृतियों के पालन का श्री गणेश भी कर दिया होगा ।
बुद्धि के देवता श्री गणेश जी का वाहन चूहा ( मूषक ) है। छोटे से इस फुर्तीले जीव का स्वभाव है कुतरना । तर्क -वितर्क और कुतर्क के नकारात्मक विचार भी चूहे की तरह बड़े फुर्तीले व सक्रिय होते हैं । इसे अपने वश में करना जरूरी है।
चलिए प्रण करें .... जब भी कोई तुच्छ विचार मन में आ जाए तो अपने विवेक बुद्धि से उस पर नियंत्रण करने की कोशिश करेंगे।
शेष पुनः
गणपति बाप्पा मोरया !!!
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