शाश्वत भविष्य की चिंता में संसार अपने 17 लक्ष्यों (Sustainable development goals ) के साथ शिक्षा से एक खास जिम्मेदारी की उम्मीद रखता है । अपनी बातों में उम्मीदों के साथ नकारात्मकता का टैग, जेनरेशन Y की आदत है । जेनेरेशन वाई ,जेन जी और अल्फा के लिए यहीं सोंचते हैं कि ट्च स्क्रीन की अभ्यस्त ऊंगलियों में कहाँ है वह दम खम जो पत्थर को तराशेंगे , जो वारली और मधुबनी या कलमकारी की बारीक कामों में फोकस कर पायेंगे । जिनके लिए Y पीढी चिंतित है , उस पीढ़ी के करामातों को देखने , समझने के लिए धैर्य की जरूरत है । एक बार इस पीढ़ी से तालमेल बैठ गया तो आप आश्वश्त हो जायेंगे शाश्वत भविष्य के प्रति ।
मुंबई के स्वामी विवेकानंद विद्यालय में लगा विज्ञान प्रदर्शनी शाश्वत भविष्य के प्रति सचेत , विचारवान , अपनी बात को अपनी तरह से रखनेवाले ऐसे ही अल्फा पीढ़ी की कहानी कहता नज़र आता है।
कक्षाओं में निष्क्रिय से बैठे , 4 से 5 मिनट भी एकाग्र रहने में अक्षम छात्रों ने रची है अपने सुंदर अद्भुत भविष्य के सुनहरे सपने वाली यह दुनिया ।
तीन सौ आठ प्रकल्पों में से मात्र पंद्रह को देखकर इतनी आशाएँ जगी हैं । इन प्रकल्पों में सौर ऊर्जा , अत्याधुनिक खेती , कचरे व्यवस्थापन के लिए बहुउद्देशीय मशीनों का निर्माण , विभिन्न प्रकार के खादों के निर्माण की तकनीकें हैं तो जियो स्टेशनरी सेटेलाइट की तकनीक भी । दिव्यांग छात्रों द्वारा लेज़र प्रणाली का उपयोग करके बनाये गए ऐसे घर का मॉडल भी है जिसमें परकोटे और मुख्य दरवाजे के अतिरिक्त कपड़े सुखाने के स्वचालित स्टैंड जो धूप और वर्षा के अनुसार काम करता है , बहुत कुछ अनूठा और अद्भुत है। इनके प्रकल्पों को देखकर दिव्यांगता वास्तव में दिव्यता को ही ध्वनित करती है ।
मैं तो आशावान हूँ , आप भी उम्मीद रखें ।भविष्य के प्रति आशावान बने रहे , लेकिन याद रखें अपने विधानों में लेकिन और किंतु का , नकारात्मकता का टैग लगाए बिना । सकारात्मक वाक्यों में नकारात्मकता का टैग गॅलोम प्रभाव उत्पन्न करता है और उपलब्धि के प्रदर्शन को कम करता चलता है ।
जेनरेशन अल्फा के हाथों में मोबाइल को देखकर , उनकी भाषा के नए संस्कारों से आप विचलित न हो इसलिए यह विज्ञान मेला आपके लिए । जी हाँ , जेनरेशन Y के लिए । जिससे अपनी भाषा में शतप्रतिशन सकारात्मकता से इस नई पीढ़ी को पुरानी पीढी पैगमेलियन प्रभाव का आशीष दे सकें ।
सुमन संदेश
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