गाँव में मिट्टीभी ,
ऐसी माँ बनजाती है,
जोअमीर गरीब पर
एक सा प्यार लुटाती है।
मिट्टी के कच्चे घर या
हो ईंट की दीवार ,
शिवप्रसाद सी ममता
सबके हिस्से आतीहै।
शहर में माएँ मशीन बन,
कमाती है पैसा ,
प्रेम और ममता के
विशाल वटवृक्ष को
जड़ों से काटकर ,
गगनचुंबी इमारतों के
मंहगे फ्लैट्स में
बोंसाई बनाकर ,
सजाना चाहती है ।
आप शहरों को क्यों
दोष देते हैं जनाब !
चाहिए शांति व सुकून !
तो जुड़िए न , जमीन से!
सच्चाई और ईमानदारी से ,
पल दो पल निस्वार्थ
भाव से बाँट दीजिए
अपना अनमोल समय
उस जमीन को जिसे
बंजर समझते है आप ।
देखना शहर की मिट्टी भी
देहातन बन सुकून दे जाती है।
पूछो अपने दिल से ,
माँगों जवाब बार - बार!
कहीं किसी गाँव को
शहर बनाने में ,
कारोबार लगाने में ,
किसी गाँव का आप पर
शेष तो नहीं उधार !
जब तक न मिले उत्तर ,
नतीजे पर बिना पहुँचे ,
गाँव सुकून देता है ,कहकर
शहर को दोष न दो ।
शहर से भी प्यार का
अपनेपन का नाता जोड़ो ।
- सुमन संदेश शर्मा
अतिसुंदर.... साष्टांग प्रणिपात 💐🙏