top of page
Writer's pictureSuman Sharma

रेडियो: एक हमसफर


गुड़िया शाम से हीं बार - बार दरवाज़े की ओर टकटकी लगाए अपने बाबू जी का इंतजार कर रही थी, बाबूजी ने कहा था, आज घर आते वक्त उसके लिए एक खास उपहार लेकर आने वाले हैं। लगभग दो घंटे इंतजार में बीत गए तो गुडिया को एहसास हुआ इतनी आतुरता ठीक नहीं। पिताजी तो नौ बजे आते है अभी सात ही तो बजे है। इंतजार का एक एक पल मुश्किल हो रहा था, माँ मे ध्यान बँटाने के उद्देश्य से रसोई में हाथ बँटाने को कहा। उसने माँ से पूछा, " माँ बताओ न ! बाबूजी क्या लाने वाले हैं । " फिर खुद ही बोल उठी , रहने दो । मुझे पता है यही कहोगी न ! इंतजार करना सीखो। आखिरकार दो घंटे भी बीत ही गए । गुड़िया दौड़ कर बाबूजी के पास .. बाबूजी sss पुकारती हुई पहुँची । जिस अंदाज में और जितने प्यार से उसने बाबूजी को पुकारा , बिल्कुल उसी अंदाज व उससे अधिक दुलार से बाबूजी उत्तर देते हुए बोले," ... मेरा बच्चा !" बाबूजी के हाथों में एक बाक्स देखकर गुड़िया आश्वस्त होती उनके पास बैठ गई । बक्स खुला .. मानो जादू का पिटारा , रेडियो था उस बक्से में । देश दुनिया की ख़बरे , गीत , भजन सब कुछ। लगभग आधे घंटे तक तो पूरा परिवार उसके इर्द गिर्द बैठा रहा । फिर बाबूजी ने उसे गुड़िया को सौंपते हुए कहा लो , यही चाहिए था न ! तुम्हें ? तुम्हारी सहेली किरन के घर जैसा रेडियो । " उस दिन से रेडियो गुड़िया का साथी बन गया था । रेडियो सुनते - सुनते हाथों की गति थमती नहीं , दोगुनी हो जाती । घर के कामकाज , रसोई- सफाई , छोटे भाई बहनों की देखभाल , कढ़ाई - बुनाई सब कुछ तो रेडियो के साथ ही तो होता । कुछ गीतों पर पैर भी थिरकते और आनंद - परमानंद की अनुभूति होती । रेडियों के साथ - साथ काम करते करते कभी कुछ गड़बड़ नहीं हुआ ऐसा तो बिल्कुल नहीं था । गेहूँ की जगह चावल पिसवा लाना ,चकली में मैदे की जगह शक्कर का बूरा मिला देना जैसी गड़बड़ के लिए रेडियो को थोड़ी न दोष दिया जा सकता है । लेकिन रेडियो को दोष दिया जाता तो गुड़िया को अच्छा न लगता ।

शायद इसीलिए ससुराल जाते समय उसने रेडियो की जिद्द न की । जिद्द करती तो उसकी जिद्द पूरी हो ही जाती न ! नहीं इतना आसान थोड़े ही था अपने साथ रेडियो को ससुराल ले जाना । आज वह समझती है माँ ने क्यों नहीं भेजा होगा उसका रेडियो उसके साथ | विद्यालय की परीक्षाओं से उसे मुक्ति मिल गई भी लेकिन ससुराल के परीक्षा भवन में उसकी कार्य क्षमता ही उसका एडमिट कार्ड था , इस परीक्षा भवन में लापरवाही का साजो सामान कहाँ मुमकिन था। कितना अच्छा होता .. हवा महल के साथ वह अपने नये घर को महल बना पाती । भूले बिसरे गीतों के साथ -साथ मायके की आदतें भूला पातीं । पर यहाँ तो कुछ नहीं था।

पचास वर्षीय मिसेज गायत्री पांडे उर्फ़ गुड़िया जो घुटने , कोहनी व गर्दन के असहनीय दर्द को झेलतेझेलते अपने डाक्टर के कहने पर जब एक काउन्सिलर से मिली तो , काउन्सिलर ने उन्हें अपने आप से कुछ सवाल व उसके उत्तर खोजने को कहा था । मिसेज गायत्री पांडे उर्फ गुड़िया अपने खुशी के वास्तविक स्त्रोत की खोज में अपने बचपन से ससुराल तक की यात्रा कर चुकी थीं। इस यात्रा में उन्होंने महसूस किया कि उनका अपना कोई निजी सुख कोई निजी खुशी नहीं थी । बच्चे , पति व परिवार के सुख - दुःख ही उनके सुख - दुःख थे । उनका अपना पसंदीदा भोजन , अपना पसंदीदा रंग , पसंदीदा गति विधि कोशिश करने पर भी वह नहीं खोज पा रही थीं । रेडियो की जगह टेलीविजन था । टेलीविजन भी तो अब पुराना हो गया था । स्मार्ट फोन में ही पूरी दुनिया समा गई थी । यू - ट्यूब में सब कुछ उपलब्ध करवा देने का आश्वासन था । पर सुकून तो गायब था । अपने लिए उसे खुद ही खोजने था , रेडियो की बात याद आते ही न जाने कितने चित्र सजीव हो उठे और यह एहसास भी कि पचपन में बचपन का वह एहसास , स्वभाव में वह थोड़ी सी लापरवाही आ जाए ,अपने लिए भी जीना आ जाए तो जीवन कितना सुंदर हो जाए ।

मिसेज गायत्री पांडे ने अपने बेटे से रेडियो की बात की। बेटे ने झटपट मोबाइल पर रेडियो सेट कर दिया । कुछ पुराने चैनल खोजने में दिक्कत हुई ... लगा मोबाइल से वह रेडियो वाली अनुभूति नही मिलेगी । वह पुराने गीत , पुराने कार्यक्रम जो बांधे रखते थे नदारद लगे . ... लेकिन खुशी की इस कोशिश में अमीन सयानी की जगह निलेस मिसरा के आवाज का जादू भा गया था । आज निलेश मिश्रा के कथा कथन की शैली की बात अपनी एक सखी से करते समय जिंदा दिल मिसेज गायत्री पांडे उर्फ़ गुड़िया की गुड़िया अधिक बहुत खुश थी । दूसरे दिन अपनी सहेली से निलेश मिश्रा की कहानियों पर ठहाके लगे तो मिसेज पांडे की ऑखों से खुशी व संतोष की बूंदे छलक गईं । इत्तेफ़ाक से आज विश्व रेडियो दिवस था , मिसेज पांडे फूली नहीं समा रही थी यह सोच - सोच कर कि उनका हमसफर रेडियो उनकी सहेली के जीवन में भी खुशी के रंग भर रहा था। आज उन्होंने एक संकल्प किया कि बरसों से अपने जीवन व खुशी को मात्र घर परिवार व बच्चों की ख़ुशियों में तिरोहित कर 'सारे गम में बीत गईं हमरी उमरिया 'जैसे लोक गीत की जगह सरगम के सुरीले खुशी के गानों को गुनगुना ज़रूर सिखायेंगी । फोन का रिसीवर रखने के पहले इधर से मिसेज पांडे बोली ," खुशी बाँटना चाहती हो तो खुश रहना भी तो जरूरी हैं अपने लिए समय निकाला करो। और हाँ , हैप्पी वर्ल्ड रेडियो डे ! विश्व रेडियो दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ! !


मिसेज पांडे ने डायरी में से अपने काउन्सिलर का नंबर अपने स्मार्ट फोन में सुरक्षित कर लिया और एक संदेश भेजा ।

पुनः धन्यवाद ..! विश्व रेडियों दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !

आप रेडियो तो सुनती है न !


काल्पनिक कथा

सुमन शर्मा

मुंबई

13 views0 comments

Recent Posts

See All

Commenti

Valutazione 0 stelle su 5.
Non ci sono ancora valutazioni

Aggiungi una valutazione
bottom of page