top of page
Writer's pictureSuman Sharma

यात्रा


जन्म से अंत तक, नज़्म से मंच तक ।

हर साँस, हर स्वर के साथ,

संग संग होते हैं बहुतेरे ।

फिर भी हर एक साँस की,

यात्रा पूरी होती है अकेले ।

सीखना भी हर श्वास की

भाँति अपनी-अपनी यात्रा है,

समय की गणना क्यों?

यात्री के भूख सम,

ज्ञान की मात्रा है

उधार की न हो,

जब भूख और प्यास,

जुड़ा हो जब उसमे एहसास |

सीखे तब जीव सब,

जागे अवनीश तब ।

चलो, इस यात्रा को,

मात्रा बनाते हैं ।

शिव डमरू के संग,

नया राग रचाते हैं !


- सुमन शर्मा

37 views0 comments

Recent Posts

See All

Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
bottom of page