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महिला सशक्तिकरण में महिलाओं की संवेदनशीलता


ज्ञान , बुद्धि ,कौशल तथा सामाजिक ,आर्थिक व राजनीतिक सभी क्षेत्रों में सशक्त महिलाओं की कमजोरी का कारण भी संवेदनशीलता है तथा उसकी ताकत भी ।


गृहस्थी व परिवार का बखूबी प्रबंधन करनेवाली महिलाएँ ,अपने कार्य क्षेत्र में पुरुषों के साथ न केवल कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली बल्कि उनसे दो कदम आगे रहने वाली महिलाएँ अक्सर संवेदनशील मोर्चों पर ही हथियार डाल देती हैं जैसे अपने बच्चों की समेकित सुरक्षा , उनके संस्कार व नीति मूल्यों के संरक्षण व संवर्धन के प्रश्न पर । वास्तव में ये जिम्मेदारियाँ जो महिलाएँ स्वयं ही ले लेती है उसके लिए मात्र वे ही जबावदेह नहीं , लेकिन अपने को जवाबदेह मानना व उसके लिए सतत स्व को खोते जाना कई बार महिलाओं को कमजोर बनाता है।


महिलाओं , सखियों व बहनों खुद के लिए भी जीना शुरु कर दो ! थोड़ा सा दिमाग पर जोर डालो और सोंचो !सोंचो अपनी पसंदीदा सब्जी या भोजन कब बनाया था ? या बिना सबको खिलाये खुद कब भोजन किया था ? अपने शौक अपनी रुचियों व अपने जीवन की उपेक्षा अपने पर अन्याय है , जब महिलाएँ समझें ।गी ,सशक्तिकरण का द्वार खुलेगा। इन छोटी- छोटी बातों में वास्तव में खुद व खुद के लिए निर्णय लेने की अनूठी बात है जो सशक्तिकरण का प्रथम अध्याय है। ऊँची डिग्रीधारक ,मोटा वेतन पाने वाली या उद्यमी महिला अथवा राजनीति के उच्च पायतान पर दिखने वाली महिलाएँ भी भीतर से अशक्त हो सकती हैं तो कभी ग्रामीण भाग की कोई अशिक्षित महिला भी संवेदना व भावनाओं के समुचित संयोजन करके जब निर्णय प्रक्रिया में अपनी भूमिका अदा करती है वह सशक्त है।


सरल शब्दों में अर्थोपार्जन में सक्षम महिला यदि वित्त संबंधी निर्णय में सार्वभौमिक अधिकार नहीं रखती या वित्तीय साक्षरता में कमजोर है तो आर्थिक रूप से अशक्त ही है इसी प्रकार सामाजिक या राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय महिलाएँ स्वयं निर्णय के लिए अपने आपको कमतर मानती है तो वे उस क्षेत्र में सशक्त कैसे हो सकती हैं , अपनी परिधि को सशक्त व व्यापक बनाने के लिए संवेदनशील भावनाओं का संयोजन महिला सशक्तिकरण को नया क्षितिज देगा ,सूक्ष्म मानसिक प्रताड़नाओं , क्रोध व प्रतिशोध में अनायास ही महिलाओं को अपनी मलीन भाषा में शामिल करने की पुरानी मशीनी व्यवस्था के प्रति थोड़ी संवेदनशीलता भी उस जीव की जन्मजात प्राकृतिक शक्ति को बरकरार रखने में कारगर होगा जो शक्तिस्वरूपा है।


महिला सशक्तिकरण ही क्यों किसी भी व्यक्ति के सशक्तिकरण में उसकी स्वयं की व उसके प्रति उसके परिवेश की संवेदनशीलता की अहम भूमिका है।


- सुमन संदेश शर्मा

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