बरगद और कच्चा धागा
- Suman Sharma
- Jun 5, 2023
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बरस दर बरस ,सालों साल ,
वट के चारों ओर,
लपेटती कच्चा धागा ,
तथाकथित सत्यवान को बचाने
भाग्य ने लिखा था, जिसके लिए,
आयु, बस आधा!
कच्चे धागे से ,
रिश्ते की पक्की बुनावट ,
इसमें कुशलता कम,
प्रेम ज्यादा है !
कच्चे धागे से,
बरगद को, प्राणवायु
. के लिए ,बांध लेना ,
सावित्री का संकेत,
जीवन पिपासा है !
हे सावित्री !
कैसे करती हो ?
गृहस्थी की सजावट ,
खिलती रहती है मुस्कुराहट !
ज्येष्ठ की पूर्णिमा पर नहीं ,
अभाव के हर अमावस को ,
कुशलता से दीवाली बनाती। जन्मदाताओं को छोड़ ,
वरदान में पहले सास श्वसुर के
नेत्रों की ज्योति माँगती !
वट पूर्णिमा , हरितालिका या
करवाचौथ ही नहीं , हर दिन
सुभाग के लिए प्रार्थना करती,
छठ पर छठी मैया से,
चौथ पर विघ्नहर्ता से ,
बच्चों की सलामती की
अरदास लगाती ।
हे सावित्री !
तुम्हारी श्रद्धा ,तुम्हारी समझदारी,
तुम्हारे तप - त्याग, निस्वार्थ प्यार
क्या कभी सत्यवान ने सराहा ?
या यमदूत और चित्रगुप्त जब हारे
स्तुति करने लगे ,अन्य देव सारे ,
तभी सत्यवान की लौटी चेतना ?
हे सावित्री ,
प्राणवायु और ऊर्जा के ,
असीम स्रोत,
बरगद के इर्द-गिर्द हैं जीवन,
क्या सत्यवान ने माना?
यदि माना तो फिर ,
आज सावित्री ही क्यों ,
सत्यवान क्यों नहीं करते
वट की आराधना ?
कच्चे धागे सी,
नारी की कोमल भावनाएँ ,
चाहें भयभीत हो,
टूटने के डर से , टूटती नहीं,
बांध ही लेती हैं अनेक रिश्ते।
कठिन है काम यह ! कहते फरिश्ते ।
हे सावित्री!
क्या नहीं बताया अपने पुत्रों को?
तुलसी ,बरगद ,पीपल , नीम ,
हैं प्रकृति के अद्भुत हकीम !
संतति, प्रकृति ,
पौधा या परिवार
इनके पोषण रक्षण और
पूजा की जिम्मेवारी ,
बल , पराक्रम और अहम से नहीं,
क्षमा,धैर्य ,उदारता के कच्चे धागे से
मजबूती से बांधे जाते हैं।
हे सावित्री !
इस बार कच्चे सूत का एक गोला
अपने सभी बच्चों को थमाना,
फिर एक पौधा लगाना ,
देना दोनों को जिम्मेदारी,
पौधे को वटवृक्ष बनाने की!
तब यह धरा भी होगी आभारी ।
क्योंकि प्राण वायु की जरूरत
दोनों को है न ! नर हो या नारी ।
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