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Writer's pictureSuman Sharma

जीने की कला


जिदंगी है तो प्राण का,

लय में धडकना है जरुरी ।

अनुकूल या प्रतिकूल हो पल,

समभाव में रहना जरुरी ।


जीत का परचम जो प्यारा,

स्वीकार हो फिर हार भी ।

सुख बने अनमोल जब,

दुख का हो एहसास भी ।


व्यक्ति, वस्तु और स्थिति,

जो मिले स्वीकार कर

मन मेरे! स्थिर बुद्धि से फिर,

फैसले हर बार कर | 1

मत उछल तू गेंद बनकर,

दूसरों की राय से ।

सीख जीने की कला,

प्रेम व सद् भाव से ।

हो किसी से भूल तो,

माफ करना है जरूरी । |

माफ करने से ही संभव,

उदार मन की चाह पूरी ।

बस इसी पल में है जीना,

मान लेना है जरूरी ।

जिंदगी है तो प्राण का

लय में धड़कना है जरुरी ।


साधना और ज्ञान का,

मेल हो हर ध्यान में ।

"मैं ही ' सोहम मंत्र का

फिर जाप करना है जरूरी ।


निर्झरी आनंद की,

रसधार बन कर जब बहे।

कर नमन गुरूदेव को,

प्रतिदान करना है जरूरी ।

- सुमन शर्मा

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