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Writer's pictureSuman Sharma

जाल : मकड़जाल


पढ़ाई हो रही है या . .. I कौन सा लेक्चर है ?

ब्रेक है न? ऐसा लगता है माँ हर वक्त उसके सिर पर मंडरा रही है। ." देख, विवान ! कितनी बार कहा है कम से कम खाने के वक्त फोन बिल्कुल नहीं । चाहे तो टेलिविजन ऑन कर लो । "

माँ ने कहा , "चलो आज हम सब स्पाइडर मैन मूवी देखते हैं । " विवान के बदले हुए भाव का कारण जब माँ ने पूछा तो विवान बिफर पड़ा । पता है मुझे आपको नहीं देखना । मैं फोन रख दूँ इसलिए । क्या मम्मा ! आप भी ! अभी अभी तो लिया हाथ में मोबाइल ! क्या ….? सुबह से... ? सुबह से... पढ़ाई कर रहा था । ऐसा है तो बंद करवा दो न ऑनलाइन स्कूल । पहले टीवी से प्राब्लम थी !अब मोबाइल के इस्तेमाल कम करने के लिए आप्शन दूढते रहती हैं ,यह बड़े लोग ! पढ़ाई के लिए दिन भर मोबाइल हाथ में हो तो कुछ नहीं , पाँच मिनट कोई वीडियो देख लिया या गेम खेलो तो आँखे खराब होती है , हेल्थ खराब होता है , मेमोरी चली जाती है , चिड़चिड़े हो जाते हैं । छोटी ने धीरे से मुस्कुराकर कहा ," और भैया .. मम्मा का फेवरिट वर्ड ? एडिक्टशन ! ह् ऐसा ही है तो बंद क्यों नहीं करवा देते ऑनलाइन स्कूल। है न ? " विवान ने छोटी का बिल्कुल अनुमोदन नहीं किया । उसे अपना काम पूरा करने का निर्देश देते हुए मॉ के पहुँच गया । " मम्मा ! क्या आप कुछ ज्यादा ही नहीं चिढ़ते? "दोस्त बनाओ । असली दोस्त ! वचुर्वल दुनिया से बाहर निकलो । ऐसे किसी से भी दोस्ती होती है क्या ? क्लास मेट सेम कॅलोनी है तो उससे दोस्ती करूँ ? फिर मोबाइल पर गेमिग में अननोन से चैरिंग की तो इतनी क्या प्राबलम ?? सेफ्टी का रोना .. हम क्या इतने बेवकूफ है ?

मोबाइल रखकर मन ही मन सोच रहा था , मम्मी की बात बिल्कुल निराधार तो नहीं । मोबाइल हाथ में हो तो समय का पता कहाँ चलता है? अब वह समय तय कर लेगा मोबाइल के लिए …. जैसे मम्मी कहती हैं .. वह लेटे लेटे आँखे मूँदे सोंच रहा था , उसने तय किया आज वह भी खेलेगा , महीनो हो गए खेले।

विवान घर के बाहर निकला था अपना बैट लिए । कुछ अपनी सोसायटी के कुछ स्कूल के दोस्त खेलने को आगे बढ़े जा रहे थे। अचानक उसके रास्ते में गुफानुमा द्वार । सभी पलकते झपकते उस राह निकल रहे थे । न जाने कैसे ?? जाले … बड़े बड़े जाले … क्या उनको परेशान न करते थे ? एक ने पूछा , क्या हुआ ? दूसरे ने जवाब दिया ," नथिंग , ही इज फेसिंग नेट इश्यू " नेट .. यस नेट । जाल … सब जगह नेट नेट . जाल, जाला , मकड़ी का ! मकड़ी का जाला या इंटर नेट ? वह समझ हीं नहीं पा रहा था ,क्या ..वह नींद में है? सब क्या बातें कर रहे थे? अचानक सारे दोस्त अदृश्य हो गए । इतनी जल्दी कैसे आगे बढ़ गये ! वह उस राह पर अकेले कैसे बढ़े? दिन का उजाला नहीं था। उस पर सुनसान जंगल सा दृश्य । मैदान जरूर दिख रहा था लेकिन मैदान में अकेले कैसे खेले ? पास ही एक पेड़ जिसकी शाखाओं पर बड़ी आसानी से वह चढ़ सकता था , चढ़ गया । पेड़ की शाखाओं पर पत्तियों के साथ साथ वहीं मकड़ी के जाले थे , न चाहते हुए भी वह उसी पर लगभग झूल रहा था । उसे खेलने के लिए , आगे बढ़ने के लिए दोस्तों की जरूरत थी लेकिन दूर दूर तक कोई नहीं दिख रहा था। अचानक उसे एक जाना पहचाना चेहरा दिखा । बिल्कुल उसी की कद काठी वाला हाथ में बल्ला लिए ! कुछ और नजदीक आने पर आकृति स्पष्ट हुई । अरे! वह तो लोचन है पड़ोस की बिल्डिग में रहनेवाला । उसका इस वर्ष का नया सहपाठी । मम्मी के मुँह से उसका नाम सुनते ही विवान चिढ़ जाया करता था । उसे लगता मम्मी जबरन उनकी दोस्ती करवाना चाहती है बस पढ़ाई के लिए । साथ आने जाने के लिए । कोई मम्मी को समाझाए दोस्ती कहीं ऐसे होती है!आज उसी लोचन को दूर से ही देखकर उसे बड़ी राहत मिल रही थी। लोचन भी बड़े उत्साह व खुशी से दूर से ही " हाय विवान " कहते हुए पास आया । बोला , " आज क्रिकेट खेलें क्या ? लेट्स डिसाइड फर्स्ट! " कहते हुए उसने अपने आप ही उन जालों को अपने बल्ले से काटते हुए बोल पड़ा ,, " वाउ !! वाट अ वंडरफुल एंड स्ट्रांग नेट यू हैव ! ग्रेट ! " मम्मी हमेशा कहती हैं जो अपने पास है उसके लिए हमेशा कृतज्ञ मतलब थैंकफुल होना चाहिए । क्या इस नेट के लिए भी हुआ जा सकता था ? अब तक वह नहीं था । चमत्कारी ढंग से उसी नेट जिसपर वह लटका हुआ झूल रहा था , उससे एक मजबूत साँकल बन गई । उसने अपना बल्ला उस पर एडजस्ट किया , विवान की ओर हाथ बढ़ाया और फिर उसका बल्ला भी । विवान अंचभित था, "वाह ! यह तो एक खूबसूरत झूला बन गया ! " लोचन ने उस अद्भुत झूले पर बैठता हुआ विवान को इशारा किया बैठने के लिए । दोनों उस पर बैठकर झूलने लगे।


अद्भुत ! अद्भु! उसी नेट पर वह पहले भी झूल रहा था लटकता हुआ और अब बात कुछ और थी। दोनों ने काफी बाते की। पढ़ाई व खेल दोनों की । तय हुआ कि वे खेलेंगे । मैदान में खेलेंगे । न जाने क्यों वह इस सारे प्रसंग में शामिल होकर भी मात्र द्रष्टा महसुस कर रहा था। हाँ लेकिन यह तो तय है अब वह खेलेगा , मोबाइल नहीं मैदान में ।

" विवान , विवान !आ रहा है न खेलने ? "डोर बेल बजाकर विवान का दोस्त इंतजार कर रहा था ।विवान मन ही मन मुस्कुराया । अच्छा , वह सपना देख रहा था। उसने मम्मी से धीरे से पूछा ,' मैं जाऊँ खेलने ?"

अभी कुछ देर पहले माँ से कुछ उँचे स्वर में बोलने का एहसास झलक रहा था । दूसरा सवाल , "मेरा मास्क कहा है? " तभी छोटी भी मचल पड़ी , भैया क्या खेलने वाले हो ? मुझे भी अपनी टीम मे लेना । प्लीज प्लीज । " माँ ने कई हिदायतें दी । हिदायतों के बावजूद मन में एक अजीब सा डर था । अभी कुछ घंटो पहले जिन बच्चों को गॅजेट से दूर रहने की दी जाने वाली नसीहते और डाँट अब बेमानी लग रहे थे । इतने महीनों घर में बंद रहकर भी बिना किजी शिकवे शिकायत के रहने के लिए उनके धैर्य व सहनशीलता की तारीफ वह मन ही मन कर रही थी । चिंता में बाल्कनी से उसने झांका । शायद विवान को बैटिंग मिला है उसके दोस्त रोहन ने उसे बैट थमा रहा है । विवान ने बैट की मूठ (हत्थे )को न पकड़कर थोड़ नीचे पकड़ा । सोसायटी के गेट पर रखे सैनिटाइजर से स्प्रे किया अब वह खेल रहा है । छोटी व उसके साथ उसकी उम्र के कुछ बच्चे खेल देख रहे थे तभी एक कुरियर बॉय गेट पर आया , जो मास्क नहीं पहने था । ये छोटे बच्चे चिल्लाने लगे , "अंकल मास्क ! " तभी एक ने तान छेड़ी ," मास्क ऑन । ये है वक्त का इशारा । मास्क ऑन , जिंदगी मिलेगी न दोबारा " एक न्यूज चैनल पर चलने वाले इस गीत को उसी अंदाज …. सो.. सॉरी और ठहाकों के साथ पूरा हुआ । सभी एक साथ मस्ती में गाते लोटपोट थे । बच्चों के कुरियर वाले अंकल ने जेब से निकालकर मास्क पहन लिया।

घर आने पर मम्मी को कुछ और कहानियाँ सुनने को मिली । थर्ड फ्लोर के मेहता अंकल बिजली .वेस्ट कर रहे हैं । दीवाली के बाद अब तक उनकी तोरण लाइट्स लगी है , इतना ही नहीं ऑन भी है । मिताली आंटी प्लास्टिक बैग लेकर बाजार जाती है । छोटो को आज खेलने का मौका नहीं मिला तो उन्होंने आज चक्कर लगा सर्वे कर लिया था। फिर छोटी का एक प्रश्न , " मम्मा ! बड़े लोग ही चैंज नहीं होंगे तो कैसे होगा चैंज ? प्लीज आप मत यूज करना प्लास्टिक बैग। आप तो नहीं यूज करते । प्लीज पापा को भी बोल देना। अच्छा ! वह छोट सैनिटाइजर मेरा होगा ओके । मैं खेलते वक्त पॉकेट में रखूँगी ।

मम्मी मुस्कुरा रही थी इस विश्वास के साथ कि हर अच्छे बदलाव के लिए बच्चें तैयार हैं।



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