खुदगर्ज़ी (गज़ल ) Suman SharmaDec 11, 20231 min readUpdated: Dec 13, 2023Rated NaN out of 5 stars.दिल ए अजीज़ बनू ,जब ये कोशिशें नाकाम हुई ,नाकामी इस कदर रोई ,सरेआम वह बदनाम हुई ।तस्वीर - ए बटुए ! अश्कों को संभालें कैसे ?जिसे था नाज खुद पर , खाक- ए सैलाब हुई ।जो मिले तुझको मेरी उदासी का सबब , बताना मुझको , मै क्यो नहीं मुस्कान हुई ?हक न इश्क का ,न अश्क का हासिल जो मुझे ,रश्क भी छूटा , अब मैं भी खुशमिजाज हुई ।अजीज़ बन गई खुद की , तो न खुदगर्ज कहना , मोहब्बत खुद से ही हर दवा ए मर्ज हुई । खुशबू फैली हवा में , बाग गुलजार हुआ , एतबार खुद पर जरूरी है, सुमन जान गई । सुमन शर्मा
शाश्वत भविष्य के प्रति आशाशाश्वत भविष्य की चिंता में संसार अपने 17 लक्ष्यों (Sustainable development goals ) के साथ शिक्षा से एक खास जिम्मेदारी की उम्मीद रखता है ।...
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