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Writer's pictureSuman Sharma

कृषि प्रयोग


कोविड १९ ने दुनिया में कोहराम मचा रखा था लेकिन लाल बहादुर सिंह और उनकी धर्म पत्नी गायत्री देवी के लिए ख़ुशियों की बहार ले आया था , अपने आँगन में बच्चों की चहल- पहल , बहू बेटे की आपसी नोंक - झोंक के बहाने अपने पुराने दिनों को याद करने की फ़ुरसत से दोनों बूढ़ा -बूढ़ी के चेहरे पर चमक आ गई थी । बात ऐसी थी कि आठ दिनों की छुट्टी पर आए बेटे और उसके परिवार को लॉकडाउन के कारण गाँव में रुकना पड़ गया था। लालबहादूर सिंह का चौदह वर्षीय पोता किशोर अपने दादा व पिता सोमेश से लंबा हो गया था , किशोर जब अपने दादाजी के साथ मेड़ो पर चलता तो वे भाव विह्वल निहारते रहते फिर सहसा अपनी ही नज़र लग जाने के भय से नजर फेर लेते । बूढी आँखों को खेत मे उगे लंबे ऊँख और पोते दोनों को गाँव भर को दिखाने का लोभ भी होता और बुरी नजर से बचाने के लिए उसे छिपाना भी चाहते। एक दिन साइकिल पर दादा लालबहादूर और दूसरे पर उनका पोता किशोर बाजार में खरीदारी करने गए थे कि प्रधान कक्का बोल पड़े ," का भइ्या लालबहादूर अब बेटवा पतोह किसानी करेंगे क्या ? और ये कौन हैं ? "उत्तर में किशोर ने चरण स्पर्श किया तो कक्का के मुँह से आशीर्वादों की झड़ी लग गईं । किशोर के व्यवहार, गाँव व मिट्टी तथा अपने लोगों से जुड़ाव दादा की आँखों में एक सपना बोता, अपने शहर में बसे परिवार को पुनः अपनी धरती से जोड़ने का सपना !

प्रधान कक्का का प्रश्न दिमाग पर हावी था सोच रहे थे इतना ही किसानी मे होता तो बेटी की शादी में कर्ज और बेटे को परदेश जाने देते ? मन में अतीत व भविष्य गहराया तो वर्तमान की खुशियाँ हवा हो गई। पत्नी से बोले , " बाप दादाओं की की जमीन को कहीं सोमेश बेंच तो नहीं देगा? पत्नी गायत्री देव ने कहा ," कहाँ आप प्रधान जी की बात सोच सोच कर दिल जलाते हो। अब तक खुशी में दोहरे हुए जा रहे थे और अब …. अभी पर ध्यान दो आगे की राम जाने ! "

रामजी खुश थे दोनों बुजुर्ग दंपति पर !

बहू ने रसोई को कुछ आधुनिक बना दिया । इंटरनेट के लिए अस्थाई व्यवस्था , कुछ अतिरिक्त बल्ब का इंतजाम हुआ । लैपटाप , मोबाइल तो साथ ही था। ऑनलाइन पढ़ाई भी शुरु हो गई । कुछ जो अब जादुई चमत्कार लग रहा था सामान्य लगने लगा था। दादा दादी भी इस चमत्कृत आभासी दुनिया के हिस्सा बन गये थे । गायत्री देवी अपने दूर दराज रहने वाली उस चचेरी बहन के परिवार से वीडियो कान्फ्रेसिंग कर रही थी, कुल मिलाकर बात यह थी कि दादा दादी पर बेटे बहू और पोते की दुनिया का हिस्सा बन खुश थे।

एक दिन किशोर की कक्षा में कृषि प्रयोगशाला पर चर्चा हो रही थी। किशोर ने दूर बैठे अपने साथियों व टीचर को मिट्टी का नमूना दिखाया , अपने मोबाइल के कैमरे में उन औजारो को दिखाया ! किशोर की गिट पिट अंग्रेजी तो लालबहादुर को समझ न आई , लेकिन यह जरूर समझ गए कि पोता खेती के बारे में बात कह रहा है, किशार ने कक्षा पूरा करने के बाद जैविक खेती , जैव तकनीक की बात की । दोनों दादा पोते अब साथ साथ गूगल पर सर्च करते। लाल बहादूर को अपनी जमीन से प्यार तो था ही लेकिन अब जब पोते का लगाव मिट्टी से देखते तो उन्हें लगता वे गंगा नहा लिए । ऐसी तकदीर सबकी कहाँ ? आज की नई पीढ़ी किसानी में कहाँ रस लेती है !

पोते की इच्छानुसार इस बार लाल बहादूर सिंह ने चने की जगह कोलियस की खेती पर राजी हो गए । गायत्री देवी ने धीरे से समझाया , "ये बच्चे है खेती का क्या अनुभव ? आप सोच लो दस बार ! ऐसे ही मुफ्त में आमदनी चौगुना होती तो … । लाल सिंह ने बीच में ही रोक दिया । " तो क्या ? शुभ काम के शुरु में ही रोने न बैठ

फिर शांति से बोले , पगली न बन । हम कितने नसीब वाले है । बेचने को तो न कहते हमारे बच्चे । अरे! नई तकनीक से नई फसल ही तो बोना चाहते हैं । तू ही सोंच । जमीन लेकर ऊपर तो जाने से रहे । जब बच्चे अपनी धरती माँ का आकर कर रहे हैं तो हमें साथ देना चाहिए ।

कई बार शहर के चक्कर लगाने पड़े । कोलियस संग और कुछ हर्बल बीजों की खरीदारी हो गई। दादा पोते के साथ साथ सोमेश भी वर्क फार्म होम करता करता थोड़ी - बहुत रुचि ले रहा था । इस बीच उसे कई बार मुंबई , दिल्ली भी जाना पड़ा । बेटे के बातचीत व हस्तक्षेप से इस बार कोलियस के खरीदार भी मिल गए थे। बेटा वापस लौटने की तैयारी कर रहा था। किशोर अपने पिता से दादाजी के पास रहकर पढ़ाई करने की जिद कर रहा था । सोमेश ने किशोर को लगभग डाँटने के स्वर कहा , " डु यू हैव एनी आइडिया हाउ मच आइ स्पेन्ड फार योर इक्सपेरिमेंट ? " बहू ने बात को सँभालते हुए कहा देखो बच्चे खेती के इस प्रयोग के लिए क्या करियर को दाँव पर नहीं लगा सकते ? यू हैव द कम वीथ अस " लालबहादूर और गायत्री देवी बरामदे में बैठे सब कुछ सुन रहे थे । दोनों समझ गए …. उनकी तरह खेतो में उगे हर्बल प्लांट्स के भी खुशी के दिन लद गए। लाल बहादूर नम आँखों से पत्नी से बोले तू ठीक ही कहती थी किसानी से अन्न तो उपजा लेंगे , एश्वर्य के लिए तो शहर ही जाना पड़ेगा न! जा , बहू से पूछ लो कुछ रास्ते के लिए … और हाँ , किशोर को कहना वो अपना .. क्या कहते हैं कोलियस प्लाटंस का नमूना भी लेते जझ्यो , अपने दोस्तों को दिखाने के काम आवेगा।

किशोर जब अपने दादाजी के चरण छूने लगा तो उस पर दादा की आँखो से नेह की बरसात होने लगी - दादा ने कहा ," कोई बात नहीं बच्चे ! हमारा कृषि प्रयोग पूरी तरह तो असफल नहीं हुआ ! मैं और यह मिट्टी तुम्हारा इंतजार करती रहेगी ।

आना जरुर , ठीक है! धरती में बीज और आँखों में सपने बोने व सींचने में किसान कहाँ थकते हैं मैं भी बिना थके इंतजार करूँगा ... I

- सुमन संदेश शर्मा

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